मानसून के अगोरा
रचना-मानसून के अगोरा(सरसी छंद)
मान बात अउ सुन अरजी ला, मानसून महराज।
तोर अगोरा हे धरती ला, बनही जग के काज।।
नदियाँ तरिया हर डबकत हे, सुक्खा परगे खार।
फटत करेजा हर माटी के, कर दे तैं उपकार।
जीव-जंतु सब तड़पत हावय, बरसव जमके आज।।
मान बात अउ सुन अरजी ला………..
बिसा डरे हँव खातु बीजहा, दवई घलो उधार।
माढ़े मूड़ पउँर के करजा, हावय असो करार।
साहूकार के चुकता करहूँ, गिरही नइते गाज।।
मान बात अउ सुन अरजी ला……….
तोर आसरा हावन जम्मो, मालिक अउ बनिहार।
घर मा बाढ़े बेटी हावय, दाई परे बिमार।
खेती ले सब आस हमर हे, रखबे सबके लाज।।
मान बात अउ सुन अरजी ला…………
काँटा खूँटी लेस डरे हन, जोहत रस्ता तोर,
भुइँया के तैं प्यास बुझादे, कसके पानी झोर,
तरसत हे कान सुने खातिर, घड़-घड़ के आवाज।।
मान बात अउ सुन अरजी ला, मानसून महराज।
तोर अगोरा हे धरती ला, बनही जग के काज।।
🙏🙏🙏🙏
नारायण प्रसाद वर्मा “चंदन”
ढ़ाबा-भिंभौरी, बेमेतरा(छ.ग.)
7354958844