सोनाखान के सोन : शहीद वीर नारायण सिंह

पुरखा के सुरता

शहीद वीर नारायण सिंह छत्तीसगढ़ के पहिली शहीद आय। 10 दिसंबर सन् 1857 में अत्याचारी अंग्रेज मन वीर नारायण सिंह ल फांसी दे दे रिहिन। ओखर अपराध अतके रिहिस के सन् 1856 के भयंकर दुकाल के समे वो ह अपन जमीन्दारी के भूख से तड़फत जनता बर एक झन बेपारी के अनाज गोदाम के तारा टोर के उहाँ भराय अनाज ल जनता म बाँट दे रिहिस। अतके नहीं ये बात के जानकारी लगिहांत वो समे के रयपुर के डिप्टी कमिश्नर ल घलो पठो दे रिहिस के ये काम वोला भूख म तड़फत उनता के भूख मिटाय खातिर करना परिस। फेर अंगरेज कमिश्नर ल ओखर मानवता अउ इमानदारी नइ भाइस। वोला तो वो जमाखोर बैपारी के सिकायत म नारायण सिंह ऊपर कार्रवाही करना पसंद आइस। अउ इही बात म डिप्टी कमिश्नर ह वीर नारायण सिंह बर गिरफ्तारी वारंट निकाल दिस। वो अत्याचारी डिप्टी कमिश्नर के नांव एलियट (चार्ल्स इलियट) रिहिस। तेखरे पाय के कतको झिन जुन्ना छत्तीसगढ़िया मनखे के एलियट नांव पलो सुने म मिल जाथे। खैर हमला नामकरन म धियान नई दे के शहीद वीर नारायण सिंह के किस्सा कोती धियान देना है।

शहीद वीर नारायण सिंह के जनम सोनाखान के जमीन्दार रामराय बिंझवार राजपूत के घर सन् 1795 ई. के कोनो तारीख म होय रिहिस। तारीख के पक्का जानकारी नई मिलय। अपन बाप के इंतकाल के बाद 35 बछर के उमर म नारायण सिंह सोनाखान के जमीन्दार बनिस। उन बड़ धारमिक, गियानी, मिलनसार अउ परोपकारी परवृत्ति के रहिन। एखरे संगे संग उंखर म धीरज, साहस अउ प्रजापालक के गुन घलो लबालब भरे रिहिस। वो सिरतोन सोनाखान के सोन रिहिस। वो ह निच्चट सादा जीवन बिताय। वो ह महल अटारी म नहीं भलुक माटी अउ बाँस के बने कच्चा मकान में राहय अउ अपन परजा के तकलीफ ल दूर करे म हरदम तियार राहय। सोनाखान के राजा सागर, रानी सागर अउ नंद सागर तलाब आजो ओखर जन कल्यानकारी सोंच के गवाही देथे।

नारायण सिंह अपन जमीन्दारी ल वह सुघर ढंग ले चलाय के बेवस्था करे राहय इही बीच सन् 1954 ई. म अंगरेज मन नागपुर के संगे संग छत्तीसगढ़ ल घलो अंगरेजी राज में मिला लिन अउ लगान लेना सुरु कर दिन। लगान ल वो समै टकोली काहय। ये टकोली के नारायण सिंह जबर विरोध करिस। इही पाय के रइपुर के डिप्टी कमिश्नर इलियट ह रानायण सिंह से चिढ़े राहय अउ वोला डांड़े के मउका खोजत राहय।

सन् 1856 के अंकाल में इलियट ल से मउका घला मिलगे। वो बछर छतीसगढ़ म सुक्खा दुकाल परगे। लोगन दाना दाना बर मोहताज हो गे। एक गांव के माखन नाँव के बेपारी ह अपन गोदाम में अनाज जमा करके राखे राहय। ये बात नारायण सिंह ल सहन नइ होइस। बेपारी जात, सोझयाय त मानतिस नहीं। आपद धरम निभाय बर नारायण सिंह वो गोदाम के तारा टोर के अनाज ल जनता में बँटया दिस। लगिहांत ये यात के जानकारी डिप्टी कमिश्नर इलियट कर घलो पठो दिस। अउ बैपारी ल सही स म भरती देय के वादा घलो करिसि, फेर बैपारी ल संतोष नइ होइस । एती इलियट ल तो मउका के तलास रिहिस काबर के नारायण सिंह के राजनैतिक चेतना, जागरुकता आ अंगरेजी सत्ता के विरोध ह अंगरेज अधिकारी मन पर चुनौती बन गे रिहिस। माखन बनिया के सिकायत ह बहाना बन गे। वीर नारायण सिंह बर गिरफ्तारी वारंट निकाल दे गिस। 24 अक्टूबर 1856 के दिन संबलपुर म वीर नारायण सिंह ल गिरफ्तार करके रइपुर के जेल में धांध दे गिस। ओखर ऊपर चोरी अउ डकैती के मुकदमा चलाय गिस असहाय जनता के दुख तकलीफ से उनला कोनो मतलब नइ रिहिस।

फेर वाह रे वीर नारायण सिंह, 28 अगस्त 1857 के वीर नारायण सिंह जेल से भागे म सफल होगे। सन् अट्ठारा सौ सन्तायने म देस म कांति के ज्वाला भड़क गे रिहिस। जेखर आंच छत्तीसगढ़ म घलो पहुंचिस । छत्तीसगढ़ के जनता मन एक सुर म जेल में बंद वीर नारायण सिंह ल अपन नेता चुन लिन। वियाकुल सोनाखान के जनता अपन नेता ल छोड़ाय वर छटपटात राहय। वो सबै संबलपुर म सुरेन्द्र साथ नांव के एक झिन क्रांतिकारी नेता रिहिस जउन हाले म हजारी बाग जेल से भागे म सफल होय रिहिस सोनाखान के जनता मन ओखरे मदद ले के बीर नारायण सिंह ल रइपुर जेल से भागे के उपाय करिन। जेल म सुरंग बनाके बीर नारायण सिंह भाग गे वीर नारयण सिंह के जेल ले भागे से अंगरेज अधिकारी मन के होस गायब हो गे इन्क्वायरी सुरु कर दे गिस अड बोला दुबारा पकड़े बर सेना के सहायता लेय गिस। यो जमाना म वीर नारायण सिंहल पकड़वाय वर 1000 रु. इनाम के घोसना करे गे रिहिस, जउन आज के लाखों रुपिया के बरोबर होथे। एती नारायण सिंह ल पकड़े बर लेफ्टीनेन्ट स्मिथ अउ लेफ्टीनेन्ट नेपीयर ल कमान संउप दे गिस।

नारायण सिंह जेल से भागे के बाद चुपचाप बइठे के बजाय अंगरेजी सत्ता से सोझ मुकाबला करे के अयलान कर दिस। सोनाखान के आदिवासी अपन नेता के वापसी से खुस हो गे राहय। 500 बंदुकधारी सेना खड़ा करे म नारायण सिंह ल कांही दिक्कत नइ आइस। फेर वो समै के अऊ बाकी दोगला जमीन्दार मन अंगरेज मन के साथ दीन।

देवरी के जमीन्दार अउ नारायण सिंह के बीच तो खानदानी दुस्मनी रिहिस। उँखरे मदद अउ रद्दा देखाय से 26 नवंबर 1857 के स्मिथ अपन सेना संग नारायण सिंह के इलाका म पहुंचे म सफल हो गे । उहां वोला मालूम परिस के नारायण सिंह अपन संग 500 सैनिक जोर डारे हे अउ वोहा अंगरेज सेना संग जोरदार मुकाबला करे पर तइयार बइठे हें। तभे एक झिन घरभेदिया ह स्मिथ ल बताइस के नारायण सिंह सोनाखान के नाकाबंदी म लगे हे फेर वो काम पूरा न होय हे अउ सोनाखान म खुसरे जा सकथे। देवरी अउ सिवरीनरायेन के जमीन्दार मन गद्दार निकलिन उँखरे सहायता ले स्मिथ 1 दिसंबर 1857 के सोनाखान बय धावा बोल दिस। नारायण सिंह घलो तइयार रिहिस। ओखर सैनिक मन स्मिथ के सेना उपर बंदूक से हमला कर दिन। एखर बावजूद स्मिथ अपन सेना सहित सोनाखान पहुंचे म सफल हो गे।

सोनाखान गांव ल नारायण सिंह खाली करवा दे रिहिस। बगियाय स्मिथ ह खाली गांव में आगी लगवा दिस। सरी गांव भंगर-भंगर जर के राख हो गे नारायण सिंह अइसन तबाही हो जही कहि के नइ सोंचे रिहिस। एती स्मिथ ल अऊ उपहारा सेना मिल गे। ओखर मदद ले स्मिथ वो पहाड़ी ल घेर लिस जिहां नारायण सिंह अपन साथी संग मौजूद राहय। दुनो डाहर ले मुकाबला होय लगिस स्मिथ के सेना जादा रिहिस, धीरे-धीरे नारायण सिंह कमजोर पड़त गिस आखिर म गद्दार मन के मदद ले नारायण सिंह के आंदोलन ल मटियामेट कर दे गिस। 2 दिसंबर के बीर नारायण सिंह गिरफ्तार हो गे। 5 दिसंबर के वोला रइपुर के डिप्टी कमिश्नर इलियट के हवाले कर दे गिस। वीर नारायण सिंह ऊपर देसद्रोह के मुकदमा चलाके फांसी के सजा सुना दे गिस। 10 दिसंबर 1857 के बिहन्चे फांसी के सजा तामील कर दे गिस। बीर नारायण सिंह देस के आजादी खातिर शहीद हो गे। बताय जाथे के जेन जघा बीर नारायण सिंह ल फांसी दे गिस तेन उही जया आय जेला आज हम रइपुर के जय स्तंभ चौक के नांव ले जानथन।

इहां सुरता करे जा सकथे सन् 1857 में भारत के आजादी खातिर पहिली स्वतंत्रता संग्राम लड़े गे रिहिस। इही लड़ई ल बीर नारायण सिंह छत्तीसगढ़ में लड़े रिहिस। छत्तीसगढ़ म सबले पहिली आजादी के अलख जगइया अउ कोनो नोहे इही वीर नारायण सिंह आय इहां यहू धियान देव के बात हे के छत्तीसगढ़ के ये पहिली शहीद एक आदिवासी बीर रिहिस। धन्न हे शहीद वीर नारायण सिंह, तोर जीवन धन्य है।

जब तक सुरुज नारायण के ताव रही, बीर नारायण तोर नांव रही, बीर नारायण तोर नांव रही।
-दिनेश चौहान, छत्तीसगढ़ी ठीहा, आदर्श कालोनी, नवापारा (राजिम)

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