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मां तेरी असहनीय पीड़ा

 

मां तेरी असहनीय पीड़ा
तन पर समेट लेती हों
इस पीड़ा को कौन सह सके
जब प्रसव समय होती हो ।।

वो वक्त वह घड़ी वो क्षण पल
सिर्फ दर्द मंडराती है
पर संतान के लिए मां उस क्षण
पीड़ा से लड़ जाती है।।

चिखती पुकारती कहराते
संकट में डाले प्राणों
नौ माह गर्भ धारण करते
समझो पीड़ा इंसानों।।

मैया इतनी पीड़ा सहकर
इस दुनिया में लाती है
इसलिए मां ममता की सागर
जग जननी कहलाती है।।

दीपक पटेल- महासमुंद