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क्रांतिकारी व्यक्तित्व के धनी हरि ठाकुर

सुरता : क्रांतिकारी व्यक्तित्व के धनी हरि ठाकुर – सुशील भोले
कला-संस्कृति-साहित्य

3 दिसम्बर पुण्यतिथि म सुरता : पुरखा साहित्यकार हरि ठाकुर जी के चिन्हारी आमतौर म एक मयारुक गीतकार के रूप म जादा हे, जेकर असल कारण आय, छत्तीसगढ़ी भाखा म बने दुसरइया फिलिम “घर द्वार” म लिखे उंकर गीत मन के अपार सफलता. फेर मैं उंकर एक इतिहासकार, पत्रकार के संगे-संग क्रांतिकारी रूप के जादा प्रसंशक हंव.

उंकर संग मोर चिन्हारी सन् 1983 म तब होए रिहिसे जब हमन अग्रदूत प्रेस म नवा-नवा काम करत रेहेन. उहाँ पुरखा साहित्यकार अउ पत्रकार आदरणीय स्वराज प्रसाद त्रिवेदी जी तब सलाहकार संपादक रिहिन हें. उंकर संग मेल-भेंट करे बर आदरणीय हरि ठाकुर जी के संगे-संग अउ तमाम साहित्यकार मन आवंय. तब उंकर मन संग मोरो भेंट-चिन्हारी हो जावत रिहिसे. आगू चलके जब मैं साहित्यिक अउ सामाजिक गतिविधि के संगे-संग छत्तीसगढ़ राज आन्दोलन म संघरेंव, तहाँ ले घनिष्ठता अउ बाढ़त गिस.

उंकर जनम 16 अगस्त 1927 के रायपुर म होए रिहिसे. उंकर सियान ठाकुर प्यारेलाल सिंह जी ल हम सब त्यागमूर्ति के संगे-संग लोकप्रिय महान श्रमिक नेता, आजादी के आन्दोलन के योद्धा, सहकारिता आन्दोलन के कर्मठ नेता, पत्रकार, विधायक अउ रायपुर नगर पालिका के तीन घांव रह चुके अध्यक्ष के रूप म जानथन. अपन सियान ले उन ला प्रेरणा मिले रिहिसे. एकरे सेती उन अपन छात्र जीवन म सन् 1942 म असहयोग आन्दोलन म शामिल होगे रिहिन हें. 1950 म छत्तीसगढ़ महाविद्यालय रायपुर म उन छात्र संघ अध्यक्ष बनगे रिहिन हें. इहें ले उन कला अउ विधि म स्नातक के उपाधि पाके दस बछर अकन ले वकालत घलो करे रिहिन हें.

देश ल आजादी मिले के बाद सन् 1955 म पुर्तगाली शासन के विरुद्ध गोवा मुक्ति आन्दोलन म घलो संघरे रिहिन हें. सन् 1956 म डा. खूबचंद बघेल के संयोजन म राजनांदगाँव म होए “छत्तीसगढ़ी महासभा” घलो म उन संघरे रिहिन हें, जिहां उन ला ए संगठन के संयुक्त सचिव बनाए गे रिहिसे. ए छत्तीसगढ़ राज आन्दोलन रूपी यज्ञ म फेर वो जीवन भर आहुति देवत रिहिन हें. मैं उंकर इही रूप के सबले जादा प्रसंशक रेहेंव. काबर ते ए आन्दोलन म महूं एक नान्हे सिपाही के रूप म जुड़े रेहेंव, अउ आजो वो अस्मिता आधारित राज निर्माण के कल्पना म संघरेच हावन. काबर ते अभी घलो अस्मिता आधारित राज निर्माण के सपना ह सिध नइ पर पाए हे. हमन ल एक अलग राज के रूप म चिन्हारी तो मिलगे हवय, फेर अभी घलो इहाँ के भाखा अउ संस्कृति ह स्वतंत्र पहिचान खातिर आंसू ढारत हावय. अभी तक छत्तीसगढ़ी ह शिक्षा अउ राजकाज के भाखा नइ बन पाए हे, उहें इहाँ के आध्यात्मिक संस्कृति के सबले जादा दुर्दशा देखे बर मिलत हे.

राज आन्दोलन के बखत ठाकुर साहब इहाँ के राजनेता मन के दु-मुंहिया गोठ ले घलो भारी नाराज राहंय. एक डहार तो ए नेता मन हमर मन जगा राज आन्दोलन के समर्थन के गोठ करंय, अउ जब दिल्ली-भोपाल म अपन आका मन के आगू म जावंय, त कोंदा-लेडग़ा होगे हावंय तइसे कस मुसवा बरोबर खुसरे असन राहंय. उंकर मन के इही चाल देख के उन नाराज राहंय. मोला सुरता हे, छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के जलसा, जेन इहाँ मठपारा के दूधाधारी सत्संग भवन म होवत रिहिसे, उहाँ उन मंच ले कहे रिहिन हें-“ए नेता मन माटी पुत्र नहीं, भलुक माटी के पुतला आंय”. छत्तीसगढ़ राज निर्माण के बाद घलो उन कहे रिहिन हें, जब तक इहाँ के भाखा अउ संस्कृति के स्वतंत्र चिन्हारी नइ बन जाही, तब तक ए राज निर्माण के अवधारणा ह अधूरा रइही. एकर बर मैं इहाँ के जम्मो कलमकार अउ छत्तीसगढ़ी अस्मिता के हितवा मनला आव्हान करत हंव, उन ए बुता म चेत करंय.

हरि ठाकुर जी हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी म सरलग लिखिन. महूं घलो अपन संपादन म वो बखत रहे छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका “मयारू माटी” म घलो उन ला लगातार छापत रेहेंव. तब हमन छत्तीसगढ़ी म गद्य रचना मन के जादा ले जादा प्रकाशन के पक्ष म राहन. ठाकुर साहब काहयं घलो-हम ला छत्तीसगढ़ी के बढ़वार खातिर गद्य रचना मन डहार जादा चेत करना चाही.

आवव, उंकर सन् 1979 म छपे छत्तीसगढ़ी रचना के संकलन “सुरता के चंदन” जेला वो मन देवीप्रसाद वर्मा ‘बच्चू” अउ श्यामलाल चतुर्वेदी जी ल भेंट करे हें. उंकर कुछ अंश ला झांक लेइन-
कतका दुख सहे आदमी, बादर घलो दगा देथे
उमड़-घुमड़ के आथे अउ बिन बरसे कहाँ परा जाथे
जरत भाग के होले ला अउ बार बार बगरा जाथे
सपना खंड़हर होत, करम के अक्षर घलो दगा देथे
कतका दुख ला सहे आदमी, बादर घलो दगा देथे.
* * * * *
अटकन मटकन दही चटाकन
लउहा लाटा करै गगन
फुगड़ी खेलत हवय पवन
चौक पुराए असन घाम हर
खोर खोर म बगरे हे
जुन्ना पाना झरय
उल्होवै नावा पाना सनन सनन
फुगड़ी खेलत हवय पवन…
* * * * *
गहरी हे नदिया के धार बैरी
जिनगी परे हे निराधार बैरी
लहरा बने हे पतवार बैरी
बिजली के तने तलवार बैरी
डोंगी हवै बिच मझधार बैरी
लदे हवै पीरा के पहार बैरी
चारो कोती हवै अंधियार बैरी
सपना के होगे तार तार बैरी.
* * * * *
खुडुवा खेलत हवै गगन भर
मंझन भर चितकबरा बादर
अउर सांझ कुन हंफरत हावै
जीभ लमाए झबरा बादर
आज बरसही काल बरसही
कहिके भुइयां जोहत हावै
टुहूं देखा के आनी-बानी
कइसन मन ला मोहत हावै
माते हाथी अस उमड़त हे
भरे न तब ले लबरा बादर
खुडुवा खेलत हवै गगन भर
मंझन भर चितकबरा बादर..
* * * * *
सन् 1956 म छत्तीसगढ़ राज आन्दोलन के नेंव रचे के संग ले जुड़े रेहे हरि ठाकुर जी 1 नवंबर 2000 के बने नवा छत्तीसगढ़ राज के नवा रूप ल तो देखिन, फेर सिरिफ कुछ महीना भर ही अपन पूरा होए सपना ल देखे पाइन अउ 3 दिसंबर 2001 के ए दुनिया ले बिदागरी ले लेइन. उंकर सरग सिधारे के पाछू सन् 2011 म अनामिका पाल जी ह “हरि ठाकुर के साहित्य में राष्ट्रीय चेतना” विषय म पं. रविशंकर विश्वविद्यालय ले पीएचडी करे हावय, जेकर माध्यम ले आदरणीय हरि ठाकुर जी के जम्मो कारज ल एके जगा जाने अउ पढ़े जा सकथे. उंकर सुरता ल डंडासरन पैलगी…
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811