युग प्रवर्तक हीरालाल काव्योपाध्याय

युग प्रवर्तक हीरालाल काव्योपाध्याय

‘ये अंक हीरालाल ‘काव्योपाध्याय’ जी ल समर्पित हे। 11 सितम्बर 1884 के दिन राजा सुरेन्द्र मोहन टैगोर ह अपन संस्था बंगाल के संगीत अकादमी द्वारा स्वर्ण केयूर (सोना के बाजूबंद)
‘ये अंक हीरालाल ‘काव्योपाध्याय’ जी ल समर्पित हे। 11 सितम्बर 1884 के दिन राजा सुरेन्द्र मोहन टैगोर ह अपन संस्था बंगाल के संगीत अकादमी द्वारा स्वर्ण केयूर (सोना के बाजूबंद) दे के सम्मान करीस अउ संस्था डाहर ले ‘काव्योपाध्याय’ के उपाधि देय गीस। हीरालाल जी भासाविद् के संग-संग अंग्रेजी, संस्कृत, हिन्दी साहित्य, बंगला, उड़िया, मराठी, गुजराती, उर्दू अउ छत्तीसगढ़ी के जानकार रहिन हे। ये बियाकरन ल सर ग्रियरसन अउ डॉ. हार्नेली ल भारत के अन्य भासा अउ बोली के सम्बन्ध ऊपर अनुसंधान करे के दिसा अउ प्रेरना मिलिस। हीरालाल जी भासाविद् सिक्छाविद्, संगीतज्ञ अउ गणित के जानकार रहिन हे।’छत्तीसगढ़ी भासा के पुन-परताप ल उजागर करे बर धनी धरमदास जी, लोचनप्रसाद पाण्डे, सुन्दरलाल शर्मा जइसे अऊ कतकोन कलमकार अऊ साहित्यकार मन के योगदान हे। अइसने रिहिन हमर पुरखा साहित्यकार हीरालाल काव्योपाध्याय। जऊन मन ह सबले ले पहिली छत्तीसगढ़ी भासा के व्याकरन लिख के छत्तीसगढ़ी भासा ल पोठ करिन।छत्तीसगढ़ी भासा के व्याकरन सन् 1885 च म सिरजगे रिहिस। जेखर अंगरेजी रूपांतर सर जार्ज ग्रियर्सन ह करिस। अऊ एखर सिरजइया रिहिन हीरालाल काव्योपाध्याय। ये व्याकरन के किताब में छत्तीसगढ़ी व्याकरण के सिरजन के संगे-संग छत्तीसगढ़ के लोक साहित्य-जइसे जनौला, दोहा, ददरिया, रमायन के कथा, ढोला के कहिनी अऊ चंदा के कहिनी के संकलन घलो हे। छत्तीसगढ़ तो लोक साहितय के भंडार आय।भासा मन के भाव उदगारे के सबले सुलभ अऊ बड़का साधन आय। जइसे भासा ह मन के आंखी आय तइसने व्याकरण अऊ साहित्य ह घलो भासा के आंखी आय। इही छत्तीसगढ़ी भासा के व्याकरण ल पोठ करे में हीरालाल काव्योपाध्याय जी के बड़ अवदान हे।छत्तीसगढ़ के जाने-माने भासाविद्, साहित्यकार, चिंतक अऊ पुरातत्व वेत्ता स्वर्गीय पंडित लोचन प्रसाद पाण्डे के मुताबिक हीरालाल काव्योपाध्याय के जनम सन् 1856 ई में रायपुर में होय रिहिस। ऊंखर पिताजी के नांव बाबू लालाराम अऊ महतारी के नांव राधाबाई रिहिस। महतारी राधाबाई बड़ कुलीन अऊ धार्मिक सुभाव के नारी रिहिस। पिता बालाराम जी धन-धान ले परिपूरन रिहिन अऊ चन्नाहू साखा के कुरमी परिवार के मानता सियान रिहिन। ऊंखर रायपुर में गल्ला अनाज के कारोबार घलो रिहिस। ओ मन धार्मिक सुभाव के फेर पुरातन विचार के मनखे रिहिन। बाबू लालारामजी नागपुर के भोंसला राज के सेना में नायक रिहिन। उन ला अंगरेज, अंगरेजी अऊ ऊंखर सभ्यता बिलकुल पसंद नई रिहिस। ऊंखर मन म भय राहय के अंगरेजी पढ़े ले मनखे अपन जात अऊ धरम ले बिमुख हो जथे। तब अईसन हालत में लईका हीरालाल बर बड़ मुसकुल रिहिस कि वो हा हिन्दी म प्राथमिक शिक्षा पाय के पाछू अंगरेजी इसकूल म भरती हो जाय। तभो ले अपन ददा के दिल ल जीते में हीरालाल सुफल हो के रायपुर के जिला स्कूल म भरती होगे। ‘होनहार बिरवान के होवत चिक्कन पान’। के हाना ल चरितार्थ करत हीरलाल पढ़ई-लिखई म सरलग सबले अव्वल नम्बर पास होवत गिस। अठारा बछर के उम्मर म कलकत्ता विश्वविद्यायालय के प्रवेश परीक्छा ल जबलपुर हाईस्कूल केन्द्र ले पास करके प्रवेश पईस। नानपन ले हीरालाल में गणित अऊ साहित्य डाहर बड़ झुकाव रिहिस।हीरालाल जी सन् 1975 ई. में रायपुर जिला स्कूल में 30 रूपिया महिनवारी पगार म सहायक सिक्छक बनगे। कुछ समे बाद ओमन जिला इसकूल बिलासपुर म घलो अपन सेवा दिन। ऊंहा हीरालाल जी ह स्कूल में गायन अऊ संगीत के नवा बिसय सुरू करीन। संगीत बिसय ल ओमन खुदे पढ़ावंय, काबर के ओमन संगीत के घलो बड़ जानबा रिहिन। अपन लगन, मिहनत अऊ ईमानदारी के बल में ओ मन धमतरी के एंग्लो-वर्नाकूलर मिडिल स्कूल में प्रधानपाठक होगे। तब ऊंखर तनखा साठ रुपिया रिहिस। इहां ऊंखर व्यक्ति के खूब विकास होईस ऊंखर मार्गदर्शन में मिडिल स्कूल धमतरी घलो खूब उन्नति करिस। अपन सार्वजनिक जिनगी में ओ मन धमतरी नगर पालिका के अध्यक्ष अऊ अस्पताल समिति के सदस्य तेखर पाछू अध्यक्ष घलो बनिन।हीरालाल तो सचमुच हीरा रिहिस। ओखर गुन के अंजोर चारों डाहर जगमग-जग बगरे लगिस। ओ समे सिक्छा विभाग के अधिकारी मन ओखर प्रतिभा ले प्रभावित होके ऊंखर खूब बड़ई करें, उनला आदर अऊ सन्मान दैंय। जीआर ब्राउनिंग, एम.ए.सी.आई.ई. जऊन शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर जनरल रिहिन अऊ होशंगाबाद के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर एस. ब्रुक मन हीरालाल जी ल खूब चाहंय। हीरालाल जी के काम ल देखके महान प्राच्यशास्त्र विद् डॉ. हार्नेली अऊ सर जार्ज ग्रियर्सन ह खूबेच बड़ई करयं।हीरालाल जी बड़ अध्ययनशील रिहिन। ओ मन भाषाविद् घलो रिहिन। छत्तीसगढ़ी हिन्दी के संगे संग अंग्रेजी, संस्कृत, बंगला, उड़िया, मराठी, गुजराती, अऊ उर्दू के घलो जानकार रिहिस। ओमन हिन्दी साहित्य ल कविता अऊ संगीत के कई ठन किताब लिख के पोठ करिन। हिन्दी स्कूल बर गीत के लिखे ऊंखर किताब ‘शाला गीत चंद्रिका’ ले बंगाल एकेडमी कलकत्ता बड़ प्रभावित होईस। बंगाल एकेडमी ऑफ म्यूजिक के निर्माता महाराजा सर सुरेन्द्र मोहन टैगोर के.सी.आई.ई. ह ये ग्रंथ ल संगीत के क्षेत्र में ऊंच स्तर के घोषित करके सन् 1885 में हीरालाल जी ल सर्टिफिकेट ऑफ ऑनर दे के सम्मानित करिन। देवी भागवत ऊपर आधारित ऊंखर किताब ‘नव काण्ड दुर्गायन’ (अनुवादित) जेन छन्द-मात्रा ऊपर आधारित रिहिस, तेमा हीरालाल जी ल ‘काव्योपाध्याय’ के उपाधि प्रदान करे गिस। संगे-संग संगीत एकेडमी डहर ले सोन के बाजूबंद ईनाम में दे गिस। ये ईनाम महान शिक्षाविद् जी.आर.ब्राऊनिंग के अनुशंसा मे दे गिस। हीरालाल जी ह गणित के अंग्रेजी किताब अऊ तुलसीदास जी के रामायण के सामान्य अंग्रेजी में सरल अनुवाद के काम घलो अपन हाथ में लिन। ओ मन विज्ञान की जिज्ञासाएं भारत का इतिहास शीर्षक ले अऊ संस्कृत के पंचतंत्र के लेखन कार्य घलो करिन। अईसे महान साहित्यकार रिहिन हीरालाल काव्योपाध्याय जी ह। जेन ह छत्तीसगढ़ के धुर्रा-माटी में खेल के छत्तीसगढ़ महतारी के अऊ ओखर भासा छत्तीसगढ़ के उन्नति के दुवार खोलिस।एक दिन छत्तीसगढ़िया बेटा, युग प्रवर्तक, हीरालाल काव्योपाध्याय के सन् 1890 में 33 बछर के छोटे उम्मर म धमतरी म इन्तकाल होगे।हीरालाल जी द्वारा लिखे व्याकरण के पूरा संशोधित अऊ बिस्तारित संस्करण अनुवाद सर जार्ज ग्रियर्सन के.सी.आई.ई.ओ.एम. डाहर ले मध्य प्रांत एवं बरार सरकार ले सन् 1921 में पंडित लोचन प्रसाद पांडेय के संपादन अऊ नरसिंगपुर के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर हीरालाल बी.ए.डी.लिट् के देखरेख में होईस। आज इही छत्तीसगढ़ी व्याकरण हमर थाथी ये। जेखर ले छत्तीसगढी अऊ छत्तीसगढ़िया के चाकर छाती हे। मयारू भासा के दीया बर सिरतोन म, इही व्याकरण तेल अऊ बाती ये।>-डॉ. पीसीलाल यादवगण्डई पण्डरियाजिला राजनांदगांव

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